आज भारतीय संत परंपरा के वाहक गुरु घासीदास जयंती है। गुरु घासीदास कबीर परंपरा के कवि थे। छत्तीसगढ़ में कबीर मत को स्थापित करके सतनाम पंथ चलाने वाले गुरु घासीदास का जन्म रायपुर के
पास गिरौद पुरी गाँव में हुआ था। 18 दिसंबर को सारा छत्तीसगढ़ उनका जन्म दिन मनाता है मगर यहाँ का
सतनामी समाज इस उत्सव में अग्रगणी रहता है। इस अवसर पर इनके द्वारा नृत्य किया जाता है। इसे पंथी नृत्य कहा जाता है। इसमें गुरु घासीदास की महीमा और उनके जीवन चरित्र का वर्णन होता है। इस नृत्य में नर्त्तक सफेद केवल धोती पहनते हैं। सबसे पहले गोल घेरा बना कर , हाथ में अगरबत्ती लेकर वे गुरु घासी दास की वंदना करके नृत्य प्रारंभ करते हैं। सारी पूजा नृत्य के दरमियान ही संपन्न की जाती हैपवित्रता के साथ साथ करतब भी शामिल शामिल होता है धीरे धीरे नृत्य तीव्र होता जाता है। पवित्रता के साथ साथ करतब भी शामिल होते है। खास कर नर्त्तकों का पिरामिड की शक्ल में ढलना। पंथी नृत्य छतीसगढ़ का प्रसिद्ध नृत्य है।
पास गिरौद पुरी गाँव में हुआ था। 18 दिसंबर को सारा छत्तीसगढ़ उनका जन्म दिन मनाता है मगर यहाँ का
सतनामी समाज इस उत्सव में अग्रगणी रहता है। इस अवसर पर इनके द्वारा नृत्य किया जाता है। इसे पंथी नृत्य कहा जाता है। इसमें गुरु घासीदास की महीमा और उनके जीवन चरित्र का वर्णन होता है। इस नृत्य में नर्त्तक सफेद केवल धोती पहनते हैं। सबसे पहले गोल घेरा बना कर , हाथ में अगरबत्ती लेकर वे गुरु घासी दास की वंदना करके नृत्य प्रारंभ करते हैं। सारी पूजा नृत्य के दरमियान ही संपन्न की जाती हैपवित्रता के साथ साथ करतब भी शामिल शामिल होता है धीरे धीरे नृत्य तीव्र होता जाता है। पवित्रता के साथ साथ करतब भी शामिल होते है। खास कर नर्त्तकों का पिरामिड की शक्ल में ढलना। पंथी नृत्य छतीसगढ़ का प्रसिद्ध नृत्य है।