छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में स्त्री
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गीत का संबंध कोमल भावों से होता है। और बात जब कोमलता की हो, तो वो स्त्री के बगैर पूरी हो नहीँ सकती।
शायद इसी लिये अधिकाँश गीतों की विषय वस्तु स्त्रियाँ ही होती हैं। और लोकगीतों की तो प्राण है नारी। समाज के तरह तरह के बंधनों से उबर कर लोकगीतों मेँ स्त्रियाँ अधिक मुखर हो उठती हैं। प्रसंग चाहे कोई भी हो वे अपना मन खोल कर रख देती हैं।
छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में स्त्रियों की भगीदारी कुछ अधिक ही मिलती है। इसीलिये इन गीतों में स्त्री मन की
अनेक परतें खुलती चली जाती हैं। छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में प्रेम भावनाओं और मन की पीड़ा से जुड़े गीतों के
साथ साथ हिंदी साहित्य की नवीन धारा स्त्री विमर्श को भी देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ी लोकगीत ददरिया और सुआ गीत स्त्री विमर्श के गीत हैं।
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गीत का संबंध कोमल भावों से होता है। और बात जब कोमलता की हो, तो वो स्त्री के बगैर पूरी हो नहीँ सकती।
शायद इसी लिये अधिकाँश गीतों की विषय वस्तु स्त्रियाँ ही होती हैं। और लोकगीतों की तो प्राण है नारी। समाज के तरह तरह के बंधनों से उबर कर लोकगीतों मेँ स्त्रियाँ अधिक मुखर हो उठती हैं। प्रसंग चाहे कोई भी हो वे अपना मन खोल कर रख देती हैं।
छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में स्त्रियों की भगीदारी कुछ अधिक ही मिलती है। इसीलिये इन गीतों में स्त्री मन की
अनेक परतें खुलती चली जाती हैं। छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में प्रेम भावनाओं और मन की पीड़ा से जुड़े गीतों के
साथ साथ हिंदी साहित्य की नवीन धारा स्त्री विमर्श को भी देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ी लोकगीत ददरिया और सुआ गीत स्त्री विमर्श के गीत हैं।